अरे! सुनो...
चलो मनाते हैं नया साल इस भीड़ से एकदम निकलकर। इन्हें मना लेने दो नया साल ठिठुरती ठंड में अश्लील गीतों की थिरकन पर।
हम चलेंगे वहाँ पर जहाँ सूर्य अपनी किरणें फैलाये,
जहाँ बसन्त अपनी सुगन्ध बिखेरे,
महुआ कुच और आम बौर लिये, बिरहा कजरी और चैत्र के गीत के साथ।
जहाँ नई फसल पकेंगी, पवित्र नवरात्रों के साथ सभी नए त्यौहार आयेंगे।
स्वच्छ जलवायु, शुद्ध वातावरण जहाँ पर सभी पशु-पक्षियाँ अपने मूल स्थान और लौट आएंगे।
जहाँ सभी नदियां, झरने तथा सरोवरों के जल में नई
लहरों की उमंगें उठेंगी।।
नौटंकी के नक्कारों पर नाचती गोरियां करती होंगी हमारी प्रतीक्षा!
सोचो कितना सुंदर होगा हमारा नया साल।
तो क्या तुम तैयार हो चलने को उस पार
जहाँ मैं जा रहा हूँ अपनी पोटली-गठरी लपेटे अपने उस गाँव (गौंसपुर) की ओर जहाँ गंगा नदी का किनारा करता है हमारी प्रतीक्षा !!
जहाँ हाथ में शीतल जल और मीठा गुड़ लेकर बैठेंगे खेत में आम की छाया के नीचे!
फिर देखेंगे मिरदंगिया नाच और सुनेंगे कसावर की खनखन ।
बैलों के गले में बंधी घण्टी और घुंघरुओं की खनखन के साथ आती हो "हट-हुर्रर, तत-तत करते किसानों की आवाज!"
वहीं चलना है हमें बोलो! चलना है कि नहीं !!
अपने उस नूतन गाँव में नूतन वर्ष मनाने जिसे हमने मिलकर बनाया है अपनी कल्पनाशक्ति से!
बस मनाओ कि हमारी ये कल्पनाशक्ति सत्य हो!
तो सोचो मत! उठो और चलो!!
अपने उस गौंसपुर गाँव की और जहाँ माँ गंगा अपनी बाहें फैलाये खड़ी है हमारी प्रतीक्षा में अपनी गोद में खेल खिलाने के लिये!!
कवि - अंकित शर्मा (कान्हा)
चलो मनाते हैं नया साल इस भीड़ से एकदम निकलकर। इन्हें मना लेने दो नया साल ठिठुरती ठंड में अश्लील गीतों की थिरकन पर।
हम चलेंगे वहाँ पर जहाँ सूर्य अपनी किरणें फैलाये,
जहाँ बसन्त अपनी सुगन्ध बिखेरे,
महुआ कुच और आम बौर लिये, बिरहा कजरी और चैत्र के गीत के साथ।
जहाँ नई फसल पकेंगी, पवित्र नवरात्रों के साथ सभी नए त्यौहार आयेंगे।
स्वच्छ जलवायु, शुद्ध वातावरण जहाँ पर सभी पशु-पक्षियाँ अपने मूल स्थान और लौट आएंगे।
जहाँ सभी नदियां, झरने तथा सरोवरों के जल में नई
लहरों की उमंगें उठेंगी।।
नौटंकी के नक्कारों पर नाचती गोरियां करती होंगी हमारी प्रतीक्षा!
सोचो कितना सुंदर होगा हमारा नया साल।
तो क्या तुम तैयार हो चलने को उस पार
जहाँ मैं जा रहा हूँ अपनी पोटली-गठरी लपेटे अपने उस गाँव (गौंसपुर) की ओर जहाँ गंगा नदी का किनारा करता है हमारी प्रतीक्षा !!
जहाँ हाथ में शीतल जल और मीठा गुड़ लेकर बैठेंगे खेत में आम की छाया के नीचे!
फिर देखेंगे मिरदंगिया नाच और सुनेंगे कसावर की खनखन ।
बैलों के गले में बंधी घण्टी और घुंघरुओं की खनखन के साथ आती हो "हट-हुर्रर, तत-तत करते किसानों की आवाज!"
वहीं चलना है हमें बोलो! चलना है कि नहीं !!
अपने उस नूतन गाँव में नूतन वर्ष मनाने जिसे हमने मिलकर बनाया है अपनी कल्पनाशक्ति से!
बस मनाओ कि हमारी ये कल्पनाशक्ति सत्य हो!
तो सोचो मत! उठो और चलो!!
अपने उस गौंसपुर गाँव की और जहाँ माँ गंगा अपनी बाहें फैलाये खड़ी है हमारी प्रतीक्षा में अपनी गोद में खेल खिलाने के लिये!!
कवि - अंकित शर्मा (कान्हा)
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