आग उगल अब लेखनी, कर मारक संधान ! मातृ-भूमि को घूरता, दुश्मन भृकुटी तान !!



आग उगल अब लेखनी, कर मारक संधान ! 

मातृ-भूमि को घूरता, दुश्मन भृकुटी तान !!
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चीनी जैसे दुष्ट पर, कभी न कर विश्वास ! 
भूले भी बनना नहीं, इस ड्रैगन का ग्रास !!
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सीमा पर सेना लड़े, घर से हम अरु आप !
पिट दो तरफा दुष्ट फिर,कहे छोड़ दे बाप !!
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बहिष्कार सामान का, करें अगर सब लोग !
इतना निश्चित जानिए, मिट ले आधा रोग !!
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अब तक जो भी क्रय किया,मत देना वह फेंक !
इसमें अपनी ही हानि है, रखो इतना विवेक !!
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चीन पैरों में झुकें, कर दें इतना दीन !
खुद मर जाए दारिद्रता से, रहे न सिर पर टीन !!
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अपना बहुमूल्य समय देकर पढ़ने के लिए ह्रदय से धन्यवाद




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