मनायेगा कौन...?


मनायेगा कौन...?

आप रुठे मैं भी रूठा गया
फिर मनाएगा कौन..?

आज दरार है कल खाई होगी,
फिर उसे भरेगा कौन..?

मैं चुप आप भी चुप,
फिर इस चुप्पी को,
तोड़ेगा कौन..?

छोटी-सी बात को यूँ ह्रदय से लगा लोगे
तो फिर ये सम्बन्ध निभाएगा कौन..?

दुखी मैं भी और आप भी,
यूँ बिछड़कर सोचो,
फिर हाथ बढ़ाएगा कौन..?

न मैं राजी और न ही आप राजी
तो फिर क्षमा करने की महानता दिखायेगा कौन..?

डूब जाएगा ह्रदय यादों में कभी,
तो फिर धैर्य बंधायेगा कौन..?

एक अहम मेरे भीतर,
और एक आपके भीतर भी,
तो भला इस अहम को हराएगा कौन..?

जीवन किसे मिला है सदा के लिये,
फिर इन पलों में,
अकेला रहेगा कौन..?

यदि मूंद ली हम दोनों में से एक ने
किसी दिन अपनी आँखे,
तो कल इस बात पर पछतायेगा कौन...?

किसी के साथ हँसते हँसते,
उतने ही अधिकार से रूठना भी आना चाहिए,
"अपनों" की आँखों का पानी,
धीरे से पोंछना आना चाहिए !

प्रेम में कैसा मान-अपमान ?
और कैसा सुख-दुख ?
बस अपनों के ह्रदय में रहना आना चाहिए!

सदैव समझौता करना सीखिए,
क्योंकि थोड़ा-सा झुक जाना,
किसी सम्बंध को सदा के लिये
तोड़ देने से बहुत अच्छा होता है।

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